Introduction:tonsilitis
tonsilitis It is an acute infection of the tonsils mostly due to haemolytic streptococci Usually the condition is bilateral.
टांसिल के लाल व शोथयुक्त फूल जाने को टांसीलाइटिस’ कहते हैं। यह टासिल के उग्रशोथ की अवस्था है जिसमें टांसिल्स के साथ-साथ मुखगार (Fauces) और ग्रसनी (Pharynx) में भी सूजन आ जाती है। इसमें टांसिल्स सूजकर मुखगह्वर के दोनों स्तंभ (Pillers of the fauces) के बाहर उभर आते हैं और इसके फलस्वरूप गले में अत्यधिक स्राव होता है। यह अधिकतर दोनों तरफ की ग्रंथियों में होता है, पर कभी-कभी एक तरफ की ग्रथि में ही सक्रमण होता है।
tonsilitis इसे टासिल का प्रदाह, टांसिल्स की तीव्र शोथ, तीव्र तुण्डि केरी, कंठ मूल ग्रंथि शोथ, टासिल बढ़ जाना, गला सूज जाना आदि नामों से भी जाना जाता है। इसे सामान्य भाषा में कंठ पाक भी कहते हैं।
■Reason of tonsilitis-
आमवातिक ज्वर के समान इसका भी प्रधान हेतु मालाकारी गोलाणु (Haemolytic streptococci) है। किसी-किसी स्थल पर इसके उत्पन्न होने के पश्चात् सधिक ज्वर (रयूमैटिक फीवर) भी हो जाता है। यह एक ड्रापलेट इफैक्शन है। वैसे यह रोग अधिकतर हीमोलिटिक स्ट्रेप्टोकोकाई कीटाणुओं के कारण होता है। परंतु न्यूमोकोकाई या इंफ्लूएंजा के कीटाणु भी ऐसा कर सकते हैं। बहुत से रोगियों में रोग, मिले जुले कीटाणुओं से होता है।
सहायक कारण- अधिक परिश्रम करने से, शीत लगने से और दौर्बल्य से इस रोग की उत्पत्ति में सहायता मिलती है। फाल्गुन, चैत, अषाढ़ श्रवण, भादों और क्वार प्रभृति महीनों प्रायः यह रोग उत्पन्न होता है। यह उष्ण आदि प्रदेशों में बहुत होता है।
यह बीमारी प्रायः 10 वर्ष से 30 वर्ष की आयु में अधिक होती है। कमजोर मनुष्यो, गदे वातावरण में रहने वालों और जुकाम तथा नैसोफारिजाइटिस के मरीजों को यह बीमारी अधिक होती है। कभी-कभी Acute infectious fever अर्थात् छूत के बुखारों जैसे- छोटी माता (स्माल पॉक्स), मिजिल्स, स्कारलेट बुखार और डिप्थीरिया के होने से पहले भी ऐसा होता है।
Types of tonsilitis
Different types of tonsillitis may occur. Doctors define them by their symptoms and recovery period.
- Acute tonsillitis: Symptoms usually last around 3–4 days but may last up to 2 weeks.
- Recurrent tonsillitis: A person has several different instances of acute tonsillitis in a year.
- Chronic tonsillitis: Individuals will have an ongoing sore throat and foul-smelling breath.
Diagnosing the type of tonsillitis will help a doctor decide the best course of treatment.
पैथोलोजिक टाइप (Pothological type)- इसमें टांसिल्स शोथयुक्त (Inflammed) तथा बड़े (Enlarged) हो जाते हैं।
एक्यूट फोलीकुलर टाइप (Acute folloicular type)- जब मल्टीपली फोली कल्स के साथ टॉन्सिल्स शोथयुक्त हो जाते हैं। (Where tonsils are in flammed with multiple follicles on its medial surface).
लक्षण- सहसा ठंड लगकर ज्वर चढ़ जाता है और शरीर का तापक्रम (Temperature) 103-104°F (39.5 to 40°C) तक हो जाता है। हाथ-पैरों तथा कमर में दर्द होता है। ग्रीवा जकड जाती है, कंठ में सूजन हो जाती है। जिह्वा मलिन और रूक्षतायुक्त हो जाती है। रोगी को अधिकतर कब्ज रहती है। मूत्र थोड़ा-सा निकलता है। अधिकतर ज्वर पाँच व सात दिन रहकर उतर जाता है। गले की ग्रंथियाँ कई दिनों तक सूजी रहती हैं। रोग के बार-बार आक्रमण होने की संभावना रहती है। गले में दर्द होने के कारण बच्चे खाना खाने से अरूचि रखते हैं। निगलने में दर्द होता है। कान में दर्द होता है। रोगी का चेहरा लाल रहता है। जीभ ऐसी प्रतीत होती है। मानो फट गई है। मुँह की श्वास में अजीब-सी गंध आती है। थकावट व भूख में कमी हो जाती है। टांसिल्स बढ़े हुए, लाल व कभी- कभी मवाद के पीले बिंदु भी दिखाई देते हैं। गर्दन की लसीका ग्रंथियों में सूजन व दबाने पर कष्ट होता है।
याद रहे- इस रोग में रोगी को अधिक प्यास लगती है। गले में खरास या दर्द होता है। फिर धीरे-धीरे गले में दर्द बढ़ता जाता है और खाना खाने में दर्द और थूक निगलने में दर्द हो सकता है। भूख मर जाती है और शरीर में दर्द होता रहता है।
tonsilitis रोग की पहचान-
शीशे द्वारा देखने पर तालुमूल के बगल में सुपारी के समान सूजन दिखाई देती है।
→ मुंह में लार अधिक आती है। गले में दोनों ओर टांसिलर ग्लैंडस बढ़े हुए होते हैं, जिन्हें छूने पर दर्द होता है
Clinical features & signs Of tonsils:
Sore throat is the commonest complaint.
- High rise of temperature.
- Difficulty in swallowing and pain on swallowing
- Associated features are malaise, headache & constipation.
- Earache is quite common.
- →Anorexia/Children refuse to eat due to odynophagia.
- →Patients usually take to bed and children go off school.
- →The temperature is often 103°- 104°F.
- →The tonsils are enlarged & congested.
- →In cases of follicular variety, the tonsils are studded with yellowish spots over the crypts.
- →The follicles often coalesec forming patch on tonsils.
- →The surrounding are of the pharynx is often inflammed.
- →Tongue is furred and breath of foetid.
- The tonsillar lymph nodes are enlarged and tander on both sides.
- Discomfort (raw Sensation) in throat.
→Voice may be thick and muffled due to thick secretions and impeded movements of the palate.Bodyache may be present.
→The patient is febrile, having tachycardia.
→Foul breath may be present.
→There may be edema of uvula and soft palate.
→Jugulo digastric nodes are enlarged & tender.
जाँच (Investigations)-
Throat swab to Isolate organism.
White cell count may be increased with polymorphocytosis.
Conformation by culture of throat swab for the organism.
नोट- बार-बार टांसिल्स का होना इस बात का घोतक है कि कहीं भी घ्राणेंद्रिय या गले में कोई शोथयुक्त प्रक्रिया चल रही है।
विभेदक निदान (Differential diagnosis)- इस रोग का डिप्थीरिया विंसेंट्स एंजाइना, पेरीटोंसिलर एब्सेस (Peritonsillar abscess), थ्रस, हर्पीज, इंफेक्सियस मोनोन्यूक्लीओसिस, स्कोरलेट फीवर
आदि से भेद करना चाहिए।
उपद्रव इस रोग में निम्न उपद्रव पैदा हो सकते हैं-
क्रोनिक टोंसीलाइटिस (Chronic tonsillitis)
पैरीटॉसिलर एब्सेस (Peritonsillar abscess)
पैराफेरेंजिल एब्सेस (Parapharyrgeal Abscess)
एक्यूट ओटाइटिस मीडिया (Acute otitis media)
एक्यूट नेफ्राइटिस एवं रियूमेटिक फीवर
सेप्टीसीमिया (Rarely) 1
उचित चिकित्सा के अभाव में सूजन के स्थान पर घाव हो जाते हैं।
स्वरयंत्र शोथ।
नवीनतम् टेस्ट- आजकल रोग की पहचान के लिए पोस्टीरियर राईनोस्कोपी जाँच तथा एक्स-रे द्वारा निदान किया जाता है।
चिकित्सा- टॉसिल्स शोथ की चिकित्सा निम्न उपक्रम के अनुसार की जाती है-
1 . इसकी सबसे मुख्य चिकित्सा यह है कि रोगी को विश्राम कराएँ एवं शीत से बचाना चाहिए।
- तरल पदार्थ पर्याप्त मात्रा में दें।
- दर्द. निवारक (एनाल्जेसिक यथा एस्प्रिन) प्रति 4-6 घंटे पर दें। इसमें दर्द और बुखार का शमन होता है।
- उपयुक्त एंटीबायोटिक्स (According to the culture and sensitivily report)
- पेनिसिलीन इसकी Drug of choice है। रसिस्टेंट केसिस तथा एच इंफ्लुएंजाई के संक्रमण में एपीसिलीन हितकारी है।
- गर्म नमक के पानी से गरारे (Hot Saline gargles are soothing) |
- बुखार के लिए, पैरासिटामोल वर्ग की औषधियों दें। यह दर्द, निवारक का भी कार्य करती है। एस्प्रिन 500 मि. ग्रा. प्रति 6 घंटे पर अथवा पैरासिटामोल (Parscitamol) 500 मि. ग्रा. दिन में 3 बार दें।
नोट- हलके केसिस में एंटीबायोटिक का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Resistance) घटती है।
याद रहे- ब्राड स्पेक्ट्रम पेनीसिलीन (एपीसिलीन अथवा एमोक्सीसिलीन Amoxycillin) अथवा
इरीथोमाइसीन का प्रयोग आजकल अधिक किया जा रहा है।
→ विटामिन C (Celin) का प्रयोग लाभकारी हो सकता है।
तरल और Soft Solid foods देना चाहिए।
TREATMENT SUMMARY:
General treatment Bedrest, Fluids, light diet, analgesics and antipyretics-Paracitamol 500 mg, 125 mg/5 ml/1 Tab. 3times daily or 1 spoon 3-4 times daily.
Specific A Single intramuscular dose of benzathen penicillin-G (Penidure 12 Lakha units) (6 Lakh units in children less than 27 kg body wight) is effective. The recurrence rate is 5% only.
Or- Inj. Benzyl penicillin 10 lakh-20 lakh (1-2 mega units) units LM 6 hourly.
After infection is controlled Tab. Penicillin V 125-250 mg 4 times daily orally for 10
days. Or Cap. Amoxycillin 250-500 mg 1-2 caps 3-times daily for 10 days.
Penicillin allergic patients Erythromycin 0.5 1 gm, per day orally for 10 days or
Cotrimoxazole 1-2 tab. twice daily orally for 10 days.
If drugs are given orally they must be administerd for at least 10 days.
नोट- टांसिल्स की सूजन में हलके गुनगुने पानी में स्त्रिीन की गोली घोलकर गरारे करवाएँ जा सकते हैं।
दर्द निवारक के रूप में बूफेन 400 मि. ग्रा. दिन में 3 बार देने से तत्काल लाभ मिलता है। अथवा टैबलेट डिक्टोटाल, बोबीरान, हेलोरन, 50 मि. ग्रा. दिन में 3 बार दे सकते हैं। अथवा
टैबलेट कांबीफ्लेम, फ्लेक्सान, मेक्सराल, आईबू-प्लस दिन में 3-4 बार दें।