दीर्घकालीन प्रसव
(PROLONGED LABOUR)
दौर्घकालीन प्रसव, प्रसव की वह अवस्था है जब उसके प्रथम व द्वितीय चरण (Ist and Und Stage) में लगा समय अपने सामान्य समय, 18 घण्टे, से अधिक होता है।
कारण (Cause):
• गर्भाशयिक जड़त्व (Uterine inertia)
गर्भाशयिक संकचनों का अनिर्दिष्ट (Incoordinate uterine contraction)।
• संकुचित श्रोणी-मेखला (Contracted Pelvis)।
• श्रोणीय अनुर्द (Pelvic tumor) |
• प्रसव के समय मूत्राशय का पूरा भरा होना।
• गर्भ की असामान्य स्थिति एवं प्रस्तुति (Malposition and Malpresentation) • जलशीर्ष (Hydrocephalus) या अन्य विकृतियाँ।
• गर्भ को निकालने के प्रयासों में असफलता।
• अधिदृढ़तानिकीय निश्चेतना (Epidural anaesthesia)
• CPD (Cephalopelvic disproportion)
• मूलाधार व श्रोणीय तल का प्रबल विरोध।
• गर्भ का बड़ा होना।
जटिलताएँ (Complications):
माँ सम्बन्धी (Maternal complications)
• मातृत्व प्राणघातक पोड़ा (Maternal distress)
• प्रासूतिक रक्तस्राव (Postpartum Haemorrhage)
• प्रजनन मार्ग (Genital tract) में चोट लगाना, ग्रैवीय फटन (Cervical tear), गौशा का फटना (Rupture of uterus) 1
• शल्यक्रियात्मक प्रक्रियाओं का बढ़ना।
• प्रासूतिक पूतिता (Puerpeal sepsis)
• उपप्रत्यावर्तन (Subinvolution)।
गर्भ-सम्बन्धी जटिलताएँ (Foetal Complications):
• अधिक समय तक रूकने से अन्तः कपालीय रक्तस्त्राव (Intracranial stress or ha morrhage) |
• गर्भाशय-अपरीय परिसंचरण (Utero-placental circulation) के कम होने से गर्द
ऑक्सीजन की कमी होना।
• संक्रमण (Infection)
• अन्तः गर्भाशयिक मृत्यु (IUD)
• शल्यात्मक प्रक्रियाओं का बढ़ना।
प्रबन्ध (Management):
दीर्घकालीन प्रसव का प्रबन्ध प्रसव की अवस्थाओं के अनुसार करते है-
प्रथम चरण के दीर्घ (Prolonged Ist stage) होने पर कारण के अनुसार चिकित की जाती है; जैसे-
• यदि दुर्बल तनाव के गर्भाशयिक संकुचन (Hypotonic uterine contraction) f उल्व (Amnion) को फाड़ने के बाद गर्भाशयिक में Oxytocin infusion डाल देते हैं।
• गर्भाशयिक संकुचनों के अधिक शक्तिशाली होने के साथ प्रथम चरण की उन्नति श्रीमी होने पर उदरीय प्रसव (Caesarean section) करते हैं अथवा (Caesarean section) की अनिवार्यता के आधार पर इसे किया जाता है।
• स्त्री के आराम को सुनिश्चित करें और उसे सहायता एवं सूचना उपलब्ध कराएँ। स्त्री के बारे में उसके परिवार को सूचित करते रहें और सभी प्रकार से चिकित्सा करने की सहमती (Consent) प्राप्त करें।
• दिये गये प्रबन्ध व चिकित्सा के ठीक-ठीक अभिलेख (Record) बनायें।
• स्त्री के आरामदायक स्थिति में उसकी सामान्य स्वच्छता व मूलाधारी स्वच्छता (Perineal Hygiene) को बनायें रखें।
• गीली गद्दियों (Pads) व पट्टी आदि को बदल दें।
• Partograph पर observations को लिखें। इसमें प्रसव प्रारम्भ होने का समय के सापेक्ष समय ग्रीवा विस्फार (Cervical dilatation) एवं विलोप (Effacement) को लिखना चाहिए।
• शरीर का ताप प्रत्येक 4-4 घण्टे बाद लेते रहें और किसी भी प्रकार के संक्रमण की संभावना का पता लगाएँ।
• अभिलेखों में रोगी को दिये गये (Intake) द्रव व आहार एवं निकलने वाले मूत्र व मल को लिखें। मूत्राशय (Urinary bladder) को दो-दो घण्टे बाद खाली करते रहें। यदि मूत्रमार्ग में अवरोध हो तो कैथेटर (Catheter) डालें और मूत्र को बाहर निकालें।
• चार-चार घण्टे बाद योनि को देखकर प्रथम चरण के प्रसव की प्रगति का आँकलन करें।
• एक बड़ा शिरोवल्क शोफ (Big caput succedaneum) या अत्यधिक पिचकाव (Excessive Moulding) को देखें। इनका होना गर्भ को श्रोणि में कठिनाई होने को दर्शाता है।
• उल्व द्रव (Amniotic fluid) के रंग को लिखें। इसमें प्रथम मल (Meconium) होना गर्भ के अतिसंकट में होने को दर्शाता है।
• गर्भ के हृदय की ध्वनि (FHS) व अन्य लक्षणों से उसके स्वास्थ्य का निर्धारण करें।
• असामान्य FHS गर्भ में ऑक्सीजन कमी को दर्शता है।
• जन्म के तुरन्त बाद बच्चे की देखभाल हेतु अपने साथ एक बाल रोग विशेषज्ञ रखें।
द्वितीय चरण के दीर्घ (Prolonged IInd Stage) होने पर –
योनिमार्गीय परीक्षण (P/V) की जाती है। जिससे गर्भ की अवस्था, विशेषता, प्रस्तुत नाग का स्थगन (Station of presenting part) आदि निश्चित होता है।
• प्रत्येक संकुचन के बाद FHS को देखें।
• ऑक्सीटोसिन फांट (Oxytocin infusion) देना प्रारम्भ करें।
• बच्चे का जन्म करायें। इसमें Forcep व Ventouse तक का प्रयोग कर सकते हैं।
• LSCS करें यदि मामला CPD का हो।