IS DISASTER MANAGEMENT IS Better Help For PEOPLE

DISASTER MANAGEMENT

(विपत्ति प्रबन्धन)परिभाषा (Definition) वे घटनाएँ जो इतने बड़े पैमाने पर क्षति, पारिस्थितिको खंडन (ecological disruption), मानव जीवन या स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवाओं को नुकसान पहुँचाती हैं कि प्रभावित समुदाय या क्षेत्र के लिए बाहर से विशेष सहायता की तुरन्त आवश्यकता पड़ जाय, उस क्षेत्र की विपत्ति (disaster) कहलाती है।An event that causes damage, loss of human life, disrupt ecosystem deteriorate health and health services on a scale sufficient to warrant an extra ordinary help from out side the affected community or area.प्राकृतिक एवं मानव द्वारा संचित शक्तियों से आये दिन पृथ्वी के किसी न किसी स्थान पर ये विपत्तियाँ आती रहती हैं। ये विपत्तियाँ (disasters) साधारण तोड़-फोड़ से लेका महाविनाश तक कर डालती है।प्राकृतिक विपत्तियों के कारण(a) अत्यधिक वर्षा से नदियों में बाढ़ (flood) आने से तटवर्ती क्षेत्रों/गाँवों में जान-माल का नुकसान।(b) समुद्र के तटीय क्षेत्रों में समुद्री तूफान, सुनामी आदि से जान-माल का नुकसान।(c) तेज हवाओं के चलने से आँधी/तूफान द्वारा जान-माल का नुकसान।(d) जानलेवा बीमारियों के बड़े पैमाने पर फैलने से।(e) भूकम्प (earthquake) से विनाश।(t) जंगलों/तेल के कुओं में आग लगने से।मानव विपत्तियों के कारण(1) परमाणु बम के दुर्घटनावश या सुनियोजित हमले से जान-माल का नुकसान।(2) बाँधों के टूटने से बाढ़ आना।(3) विषैली गैसों के रिसाव से (भोपाल गैस विपत्ति)।(4) युद्ध में रासायनिक व परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से।

विपत्ति प्रबन्धन (Disaster Management)इसके तीन चरण है

-1. विपत्ति प्रतिउत्तर (Disaster response)2. विपत्ति उपशमन (Disaster Mitigation)3. विपत्ति तैयारियाँ (Disaster preparedness)विपत्ति प्रतिउत्तर (Disaster response) विपत्ति से पीड़ित लोगों को इलाज देना आवश्यक होता है। पहले कुछ घण्टों में आपातकालीन रक्षा (emergency care) की जरूरत पड़ती है। सामूहिक हताहतों (mass casualities) की चिकित्सा को निम्न भागों में बाँट सकते हैं-विपत्ति उपशमन (Disaster mitigation) विपत्ति के कहर से प्रीभावित लोगों को ढूँढ़ने, उन्हें सुरक्षित निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने एवं आवश्यक first aid देने की तुरन्त आवश्यकता होती है। इस कार्य हेतु क्षेत्र के अन्य समीपस्त स्थानों की सेवाएँ तुरन्त ली जाती हैं। इसमें अतिरिक्त बचाव दल, चिकित्सीय टीम व नर्सिंग स्टाफ, स्वयं सेवक, राष्ट्रीय NGOs आदि की जरूरत पड़ती है।विपत्ति तैयारियाँ (Disaster preparedness) – विपत्ति से चोटग्रस्त लोगों को जितना जल्दी हो उन्हें स्वास्थ्य सुविधा स्थलों पर पहुँचा देना चाहिए। इन स्थानों पर सम्भावित हताहतों की संख्या के अनुरूप पर्याप्त बिस्तर, दवाईयाँ, चिकित्सकों व शल्य चिकित्सकों (surgeons) की पर्याप्त सेवाएँ होनी चाहिए। लोगों के खाने व रहने की पर्याप्त अस्थाई व्यवस्था बनानी चाहिए। इसके अतिरिक्त एक सूचना केन्द्र स्थापित करना चाहिए, जहाँ लोग अपने परिचितों, रिश्तेदारों आदि के बारे में जानकारी ले सकें।अन्य साधन (Other measures)(1) पीड़ितों की पहचान को प्राथमिकता देनी चाहिए। सूचना केन्द्र पर शवों के स्थान आदि की सूचना होनी चाहिए।(2) सूचना केन्द्र द्वारा भीड़, तमाशाबीनों आदि को नियन्त्रित करना चाहिए।(3) शव रखने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए।(4) घायलों को शीघ्रातिशीघ्र वहाँ से स्थानान्तरित (shift) कर देना चाहिए।(5) पर्याप्त प्रशासनिक प्रबन्ध, देख-भाल व स्थिति की गम्भीरता से बचाव की आवश्यकता है।बाद की रक्षा (After care) पीड़ितों को बचाव के बाद उनकी अवस्था के अनुसार चिकित्सा प्रारम्भ कर देनी चाहिए। हताहत की गम्भीरता के आधार पर हो चिकित्सा करनी चाहिए, उनके जीवन की रक्षा करनी चाहिए।रोगियों की छंटनी उन पर रंगीन चिन्ह (colour code) डालकर करनी चाहिए-उच्च प्राथमिकता या स्थातरण योग्य हताहत पर लाल: मध्यम प्राथमिकता के लिए पीला:

Ambulatory casualities

पर हरा; मृत या मरणासन्न हताहतों पर काला चिन्ह लगान चाहिए।जिन लोगों को कम चोटें लगी हों व उनका घर सुरक्षित हो तो उनके उपचार को पर ही करना चाहिए। सभी हताहतों पर पहचान चिन्ह लगा देना चाहिए। जिस पर उसका नाम, उम्र, पता हताहत वर्ग, निदान व प्रारम्भिक उपचार लिखा हो।मृतक की पहचान (Identification of Dead) विपत्ति में मारे गये लोगों क उपलब्ध साधनों से पहचान करनी चाहिए। इन्हें घटना स्थल से तुरन्त मुर्दाग्रह भेज देन चाहिए। तदोपरान्त इसे उसके सम्बन्धियों को सुपुर्द कर देना चाहिए।राहत चरण (Relief phase) बाहर से सहायता मिलना प्रारम्भ होने पर राहत कावं प्रारम्भ हो जाते हैं।

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